*ईश्वर का घर |Bhakti Stories | Bhakti Kahani | Dharmik kahaniya

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आज का अमृत
कस्तूरी कुंडल बसै, मृग ढूंढे वन माहि।
ऐसे घट घट राम हैं, दुनियां देखे नाही ।
अर्थ: मृग की नाभि में कस्तूरी रहता है पर वह जंगल में ढूंढते रहती है। ईश्वर सर्वत्र व्याप्त है परंतु दुनियां उन्हें देख नही पाती है।

 🍁🍁🍁*ईश्वर का घर 🍁🍁🍁

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एक बार भगवान दुविधा में पड़ गए, लोगों की बढ़ती साधना वृत्ति से वह प्रसन्न तो थे पर इससे उन्हें व्यवहारिक मुश्किलें आ रही थीं । कोई भी मनुष्य जब मुसीबत में पड़ता, तो भगवान के पास भागा-भागा आता और उन्हें अपनी परेशानियां बताता । उनसे कुछ न कुछ मांगने लगता । भगवान इससे दु:खी हो गए थे ।

अंतत: उन्होंने इस समस्या के निराकरण के लिए देवताओं की बैठक बुलाई और बोले –

“देवताओं, मैं मनुष्य की रचना करके कष्ट में पड़ गया हूं । कोई न कोई मनुष्य हर समय शिकायत ही करता रहता हैं, जिससे न तो मैं कहीं शांति पूर्वक रह सकता हूं, न ही तपस्या कर सकता हूं ।

आप लोग मुझे कृपया ऐसा स्थान बताएं, जहां मनुष्य नाम का प्राणी कदापि न पहुंच सके ।“

प्रभू के विचारों का आदर करते हुए देवताओं ने अपने-अपने विचार प्रकट किए ।

गणेश जी बोले – “आप हिमालय पर्वत की चोटी पर चले जाएं ।“

भगवान ने कहा – “यह स्थान तो मनुष्य की पहुंच में हैं । उसे वहां पहुंचने में अधिक समय नहीं लगेगा ।“

इंद्रदेव ने सलाह दी कि “वह किसी महासागर में चले जाएं ।

वरुण देव बोले -“आप अंतरिक्ष में चले जाइए ।“

भगवान ने कहा – “एक दिन मनुष्य वहां भी अवश्य पहुंच जाएगा ।“ भगवान निराश होने लगे थे । वह मन ही मन सोचने लगे- “क्या मेरे लिए

कोई भी ऐसा गुप्त स्थान नहीं हैं, जहां मैं शांतिपूर्वक रह सकूं ।“

अंत में सूर्य देव बोले- “ प्रभू ! आप ऐसा करें कि मनुष्य के हृदय में बैठ जाएं । मनुष्य अनेक स्थान पर आपको ढूंढने में सदा उलझा रहेगा, पर वह यहाँ आपको कदापि न तलाश करेगा ।“

ईश्वर को सूर्य देव की बात पसंद आ गई ।

उन्होंने ऐसा ही किया और वह मनुष्य के हृदय में जाकर बैठ गए ।

उस दिन से मनुष्य अपना दुख व्यक्त करने के लिए ईश्वर को ऊपर, नीचे, दाएं, बाएं, आकाश, पाताल में ढूंढ रहा है पर वह मिल नहीं रहें ।

*मनुष्य अपने भीतर बैठे हुए ईश्वर को नहीं देख पा रहा हैं ll

 

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