क्रोध की भूल
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एक बार एक राजा को किसी विदेशी राज्य से उपहार में कांच की तीन सुन्दर मूर्तियाँ प्राप्त हुईं। राजा ने उनकी देखभाल के लिए एक नौकर नियुक्त कर दिया। नौकर रोज उनकी सफाई करता और चमका कर रखता।
राजा का स्पष्ट आदेश था कि मूर्तियों की देखभाल में कोई कमी न रह जाए। एक दिन सफाई के दौरान नौकर के हाथ से एक मूर्ति गिर कर टूट गई। राजा के क्रोध का ठिकाना ना रहा, उसने तत्काल नौकर को मृत्युदंड देने की घोषणा कर दी।
नौकर को पकड़ कर जेल में डाल दिया गया। अगले दिन उसे फांसी होनी थी। नौकर बुद्धिमान था वह बचने के उपाय ढूंढ रहा था। आखिरकार उसने रास्ता खोज ही लिया। उसने राजा से प्रार्थना कर मरने से पहले उसकी अन्तिम इच्छा पूरी करने को कहा। राजा ने पूछा बताओ तुम्हारी आखिरी इच्छा क्या है ।
उसने कहा, मरने से पहले मैं उन मूर्तियों को हाथ में लेकर जी भर कर देखना चाहता हूँ। राजा ने इसकी अनुमति दे दी। इसके बाद उसे मूर्तियों के पास ले जाया गया। उसने मूर्तियाँ हाथ में लीं और उन्हें फर्श पर जोर से पटक डाला। मूर्तियाँ चूर-चूर हो गईं। राजा ने जब यह सुना तो आपे से बाहर हो गया। उसने नौकर को बुलाकर उसकी इस हरकत के बारे में पूछा।
नौकर जवाब दिया, महाराज ! इसके पीछे कोई दुर्भावना नहीं है। मैंने तो ऐसा करके 2 लोगों की जान बचाने का काम किया है। आप किसी ना किसी को इनकी देखभाल के लिए रखते और देखभाल के क्रम में उससे भी मूर्ति टूट सकती थी। आप फिर उसे मृत्युदंड दे देंगे, लेकिन अब मूर्तियाँ ही नहीं रहीं इसलिए 2 लोगों की जान बच गई। मैंने जीवन के अन्तिम क्षणों में एक पुण्य कार्य करने की कोशिश की है।”
नौकर की इन बातों से राजा को अपनी भूल का अहसास हो गया उसने नौकर को क्षमा कर दिया..!!