डिप्रेशन ग्रस्त एक सज्जन
डिप्रेशन ग्रस्त एक सज्जन जब पचास साल की उम्र से ज्यादा के हुए तो उनकी पत्नी ने एक काउंसलर का अपॉइंटमेंट लिया जो ज्योतिषी भी थे।
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पत्नी बोली:- “ये भयंकर डिप्रेशन में हैं, कुंडली भी देखिए इनकी।”और बताया कि इन सब के कारण मैं भी ठीक नही हूँ।
ज्योतिषी ने कुंडली देखी सब सही पाया। अब उन्होंने काउंसलिंग शुरू की, कुछ पर्सनल बातें भी पूछी और सज्जन की पत्नी को बाहर बैठने को कहा।
सज्जन बोलते गए…बहुत परेशान हूं…चिंताओं से दब गया हूं…नौकरी का प्रेशर…बच्चों के एजूकेशन और जॉब की टेंशन…घर का लोन, कार का लोन…कुछ मन नही करता…दुनिया मुझे तोप समझती है…पर मेरे पास कारतूस जितना भी सामान नही….मैं डिप्रेशन में हूं…कहते हुए पूरे जीवन की किताब खोल दी।
तब विद्वान काउंसलर ने कुछ सोचा और पूछा, “दसवीं में किस स्कूल में पढ़ते थे?”
सज्जन ने उन्हें स्कूल का नाम बता दिया।
काउंसलर ने कहा:- “आपको उस स्कूल में जाना होगा। आप वहां से आपकी दसवीं क्लास का रजिस्टर लेकर आना, अपने साथियों के नाम देखना और उन्हें ढूंढकर उनके वर्तमान हालचाल की जानकारी लेने की कोशिश करना। सारी जानकारी को डायरी में लिखना और एक माह बाद मुझे मिलना।”
डिप्रेशन ग्रस्त एक सज्जन
सज्जन स्कूल गए, मिन्नतें कर रजिस्टर ढूँढवाया फिर उसकी कॉपी करा लाए जिसमें 120 नाम थे। महीना भर दिन-रात कोशिश की फिर भी बमुश्किल अपने 75-80 सहपाठियों के बारे में जानकारी एकत्रित कर पाए।आश्चर्य!!!उसमें से 20 लोग मर चुके थे…7 विधवा/विधुर और 13 तलाकशुदा थे…10 नशेड़ी निकले जो बात करने के भी लायक नहीं थे…कुछ का पता ही नहीं चला कि अब वो कहां हैं…5 इतने ग़रीब निकले की पूछो मत… 6 इतने अमीर निकले की यकीन नहीं हुआ…कुछ केंसर ग्रस्त, कुछ लकवा, डायबिटीज़, अस्थमा या दिल के रोगी निकले… एक दो लोग एक्सीडेंट्स में हाथ/पाँव या रीढ़ की हड्डी में चोट से बिस्तर पर थे…कुछ के बच्चे पागल, आवारा या निकम्मे निकले…1 जेल में था…एक 50 की उम्र में सैटल हुआ था इसलिए अब शादी करना चाहता था, एक अभी भी सैटल नहीं था पर दो तलाक़ के बावजूद तीसरी शादी की फिराक में था…
महीने भर में दसवीं कक्षा का रजिस्टर भाग्य की व्यथा ख़ुद सुना रहा था…
काउंसलर ने पूछा:- “अब बताओ डिप्रेशन कैसा है?”
इन सज्जन को समझ आ गया कि उसे कोई बीमारी नहीं है, वो भूखा नहीं मर रहा, दिमाग एकदम सही है, कचहरी पुलिस-वकीलों से उसका पाला नही पड़ा, उसके बीवी-बच्चे बहुत अच्छे हैं, स्वस्थ हैं, वो भी स्वस्थ है, डाक्टर, अस्पताल से पाला नहीं पड़ा…
सज्जन को महसूस हुआ कि दुनिया में वाकई बहुत दुख है और मैं बहुत सुखी और भाग्यशाली हूँ।
दूसरों की थाली में झाँकने की आदत छोड़ कर अपनी थाली का भोजन प्रेम से ग्रहण करें। तुलनात्मक चिन्तन न करें, सबका अपना प्रारब्ध होता है।और फिर भी आपको लगता है कि आप डिप्रेशन में हैं तो आप भी अपने स्कूल जाकर दसवीं कक्षा का रजिस्टर ले आएं और…..देखो फिर क्या होता है आप अपने आपको संसार का सर्व श्रेष्ठ सुखी इंसान समझने लगोगे।
एक कहानी ऐसी जो प्रतिदिन आपके जीवन में नयी ऊर्जा उत्पन्न करने में सक्षम है
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मंगलमय प्रभात