माँ सरस्वती की पाठशाला | Hindi Kahani | Bhakti Kahani | Bhakti Stories | Moral Stories | Kahaniya –

माँ सरस्वती की पाठशाला | Hindi Kahani | Bhakti Kahani | Bhakti Stories | Moral Stories | Kahaniya –

स्वर्ग के सभी देवी देवता बहुत परेशान थे कारण था उनके बच्चों का पढ़ाई में ध्यान ना देकर शैतानियां में ध्यान देना ऐसा ही कुछ आज भी स्वर्ग में बनी पाठशाला में हो रहा था चलो बच्चों आज हम सीखेंगे कि बुरी शक्तियों पर हमें विजय कैसे प्राप्त करनी है कैसे अपनी बुद्धि का उपयोग करना है मैं अंधेरा कर दूंगा चलो चलो गुरुजी हमें पढ़ाना शुरू करें इससे पहले हमें यहां से भागना होगा चलो हम जादू करेंगे मैं रात्रि कर दूंगा मैं बादल बुलाता हूं आज तो वर्षा होगी कक्षा में बच्चों ने जादू से बारिश कर दी बस फिर क्या था कक्षा के सारे बच्चे

भागने लगे गुरुजी अब हम नहीं पढ़ेंगे अब तो बारिश हो गई है हम भीग जाएंगे मैं सब जानता हूं यह किसकी चाल है यह सब देवताओं के शरारती बच्चों का किया हुआ कार्य है बच्चे जोर से हंसे अब तो उनकी शैतानियां बढ़ती ही जा रही थी वो रोजाना ही कोई ना कोई शरारत करके कक्षा में ना पढ़ने का बहाना ढूंढने ही लगे अगर देव गुरु शक्ति से पेश आते तो वह कक्षा में बैठकर शरारती करने लगते गुरुजी ये देखिए वायु कुमार मुझे हवा में उड़ा रहा है गुरुजी पहले पृथ्वी कुमार ने मुझे चूहा बनाया था और सब मुझे चूहा कहकर पुकार रहे थे यह सब क्या हो रहा है मैं देख रहा हूं तुम सब अपनी

शक्तियों का दुरुपयोग कर रहे हो तुम सब कितने प्रभावी छात्र हो पर अपनी सारी शक्तियों और प्रभाव को व्यर्थ कर रहे हो मुझे कुछ करना ही होगा देवगुरु एक बार फिर सभी देवताओं को पाठशाला में बुलाते हैं और उनसे सभी बच्चों की शिकायत करते हैं यह बहुत गंभीर बात है देवगुरु हम भी चाहते हैं हमारे बच्चे अच्छी शिक्षा प्राप्त करें ताकि स्वर्ग की अभिलाषा भी बनी रहे और सुरक्षा भी आप ठीक कह रहे हैं चंद्रदेव स्वर्ग का कार्यभार आगे चलकर हमारी संतानों ने ही संभालना है इसके लिए इन्हें गंभीरता दिखानी होगी और अच्छी शिक्षा ग्रहण करनी होगी नहीं तो शैतानियां में यह

बिल्ली कोई किसी को हवा में उड़ा रहा है कोई किसी को पृथ्वी में भेज रहा है मैं उनकी शरार तों से तंग आ गया हूं अब शीघ्र ही कुछ करना होगा मुझे मां सरस्वती को पाठशाला में बुलाना ही होगा मैं जा माता हूं वो पृथ्वी और स्वर्ग का कार्यभार संभालने में अधिक व्यस्त रहती हैं पर उनके आए बिना मुझे नहीं लगता यह बच्चे अपनी शरारत छोड़ पाएंगे अगर आपको यह सही लगता है गुरुदेव तो कृपया करके शीघ्र ही मां सरस्वती को पाठशाला में बुला लीजिए

जाता हूं सभी देवी देवता अपने अपने स्थान पर वापस लौट आए देव गुरु मां सरस्वती के पास जा आते हैं और उन्हें सारी बात कहते हैं आइए देवगुरु और पाठशाला कैसी चल रही है सब बच्चे ठीक से पढ़ाई कर रहे हैं ना देवी सरस्वती मैं इस विषय में बात करने के लिए आपके समक्ष उपस्थित हुआ हूं हे देवी सरस्वती आप वाणी विद्या कला विज्ञान और संगीत की देवी मानी जाती हैं आप ज्ञान की देवी हैं हम सब आपकी उपासना और कृपा से ही ज्ञान प्राप्त करने

आपकी आवश्यकता बच्चे बहुत अधिक शरारती हो गए हैं मैं चाहता हूं कुछ दिन आप पाठशाला में उपस्थित रहकर बच्चों में ज्ञान का प्रकाश फैला दें ताकि बच्चे उचित मार्ग पर आ सके मुझे इस कार्य में आपकी आवश्यकता है देवी चिंता मत कीजिए देवगुरु मैं कल पाठशाला में अवश्य आऊंगी और जब तक बच्चे सही और गलत में अंतर नहीं समझ लेते तब तक मैं उन्हें स्वयं ही पढ़ाऊंगा में मां सरस्वती उपस्थित होती है सभी बच्चे उन्हें प्रणाम कर करते हैं बच्चों

करते हैं हम कुछ दिनों के लिए स्वर्ग की यात्रा पर निकलते हैं इस तरह से आप सभी को भ्रमण करने का अवसर भी प्राप्त होगा भ्रमण पर फिर तो बहुत आनंद आने वाला है कितने समय से हम सब भ्रमण पर नहीं गए हां बहुत आनंद आएगा हम खूब खेलेंगे मां सरस्वती पाठशाला के सभी बच्चों को अपने साथ स्वर्ग की यात्रा पर ले जाती हैं देवगुरु भी उनके साथ जाते हैं सभी देवी देवता बहुत खुश थे कि आज मां सरस्वती स्वयं उनके बच्चों को पढ़ाने के लिए आई हैं उन्हें विश्वास था

की देवी इन बच्चों को ज्ञान देने के लिए उपस्थित हुई हैं तो यह बच्चे अवश्य ही शैतानी छोड़कर पढ़ने में ध्यान लगाएंगे मेरे साथ-साथ सभी देवताओं का भी यही कहना है अवश्य देवगुरु आप बिल्कुल भी चिंता मत कीजिए जब तक मेरा कार्य पूर्ण नहीं होता मैं यहां से प्रस्थान नहीं करूंगी यात्रा के दौरान मां सरस्वती सभी विद्यार्थियों को विभिन्न विषयों पर ज्ञान देती रही उन्होंने उन्हें ध्यान विद्या कला विज्ञान और धर्म के बारे में सिखाया कुछ दिनों के

को समझाती उन्हें ज्ञान का संदेश देती हैं तो बच्चों बताओ हमारे लिए ज्ञान कितना आवश्यक है माता ज्ञान हमारे लिए अत्यधिक मूल्यवान है ज्ञान हमें अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाता है ज्ञान प्राप्ति आत्म विकास समझदारी और जीवन में सही दिशा में बढ़ने के लिए आवश्यक है यह व्यक्ति को समस्याओं का समाधान निकालने सच्चे मूल्यों की पहचान करने और समृद्धि की दिशा में अग्रसर होने में मदद करता है मता ज्ञान प्राप्ति से हमें यही संदेश मिलता है कि हमें अपनी

हम वादा करते हैं माता हम अपनी शक्तियों का कभी भी दुरुपयोग नहीं करेंगे सदैव नवीन कार्यों में ही अपनी शक्तियों को लगाएंगे जो कि सृष्टि के विकास में सहायक होंगी हम पढ़ाई पर पूरा ध्यान देंगे माता हम यह वादा करते हैं देवगुरु अब हम आपको कभी भी किसी शिकायत का मौका नहीं देंगे हम सदैव आपका कहना मानेंगे सभी विद्यार्थियों की बातें सुनकर मां सरस्वती मुस्कुरा देती हैं देव गुरु भी प्रसन्न थे सभी देवताओं के बच्चे पढ़ाई में पूरा ध्यान देने लगे यह देखकर सभी

माँ सरस्वती की पाठशाला | Hindi Kahani | Bhakti Kahani | Bhakti Stories | Moral Stories | Kahaniya –

 

देवी देवता भी बहुत प्रसन्न थे स्वर्ग के बच्चों ने उनकी शिक्षा को गहराई से समझा और उन्होंने अपनी नकारात्मकता को छोड़ दिया वे सही मार्ग पर आ गए और पढ़ने लगे इस कहानी से हमें यही सीख मिलती है कि ज्ञान की खोज में लगन और सही मार्ग पर चलने से हम अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं

 

स्वामी जब मैं पृथ्वी लोक पर बच्चों को स्कूल जाते देखती हूं ना तो मेरा भी बड़ा मन करता है कि मैं भी स्कूल जाऊं मुझे भी कोई अध्यापिका पढ़ाए मेरी भी स्कूल में सहेलियां हो जिनके साथ में खेल सकूं कितना अच्छा लगता है ना सब बच्चों को स्कूल जाता देख काश मैं भी यह अनुभव कर पाती शिवजी ने

भी आपकी इतनी इच्छा है तो इसमें सोचना क्या देवी आलमपुर गांव में मनोज और संध्या नाम के पति-पत्नी रहते थे उनके परिवार में उनके पा साल के दो जुड़वा बेटे अमित और सुमित और एक बूढ़ी मां जानकी थी मनोज एक लकड़हारा था वह लकड़ियां काटकर अपना और अपने परिवार का पेट पालता था मनोज और संध्या दोनों ही मां दुर्गा के बहुत बड़े भक्त थे वह हर रोज दुर्गा मां की पूजा करते थे मनोज के दो बेटे थे लेकिन उसकी हमेशा से बड़ी चाहत थी कि उसकी भी दुर्गा मां जैसी एक प्यारी सी

बेटी हो लेकिन दो बेटों के बाद संध्या को गर्भ धारण में बड़ी दिक्कतें आ रही थी जिस वजह से वह फिर से मां नहीं बन पा रही थी फिर एक रोज मनोज जंगल में जब पेड़ से लकड़ियां काटने लगा तो उसे उस पेड़ के खोख से एक बच्ची के रोने की आवाज आई उसने पेड़ के खोख में देखा तो उसमें एक नवजात बच्ची रो रही थी अरे यह बच्ची इस पेड़ में कहां से आई मनोज झट से उस बच्ची को गोद में उठाया और उसे अपने साथ घर ले आया यह तो बड़ी ही प्यारी बच्ची है जी यह तो साक्षात मां दुर्गा का हम पर आशीर्वाद है मां अब तो हमारी भी छोटी बहन आ गई अब बताऊंगा मैं

उस चिंटू को बड़ा घमंड करता था ना अपनी बहन को लेकर बिटिया के घर आने से सब बहुत खुश थे अगर कोई नाखुश था तो वो थी संध्या की सास जानकी ना जाने किसका पाप किसका बोझ उठा लाया मेरा बेटा बेटी की चाह में तो यह बाबला ही हो गया है ऐसा क्यों कहती हो मां यह तो स्वयं मां दुर्गा हमारे घर आई हैं देखो तो कितनी प्यारी सूरत है इसकी कितना तेज है इसके चेहरे पर ऐसा लगता है यह साक्षात मां दुर्गा ही है बिल्कुल ठीक कहा जी इसलिए अब हम अपनी बिटिया का नाम अंबिका रखेंगे अंबिका को घर में सब बहुत प्यार करते उसके घर में आने से एक अलग ही रौनक

नहीं पता और बस उठा लाया एक तो वैसे ही मेरे बेटे पर पूरे परिवार का पेट पालने का भार और अब ऊपर से इस बेटी का बोझ धीरे-धीरे समय बीता और अंबिका 5 साल की हो गई उसके दोनों भाई अमित सुमित गांव के स्कूल में पढ़ते थे उन्हें देख अंबिका का भी बड़ा मन करता कि वह भी स्कूल जाए फिर एक रोज वह अपने बाबा से कहती है बाबा मुझे भी स्कूल जाना है मैं भी पढ़ना चाहती हूं लेकिन मेरी बच्ची क्या हुआ बा बाबा लेकिन यह कि हमारे पास इतने पैसे नहीं है

में कितना खर्च आता है और वैसे भी तुझे तो कल को पराए घर ही जाना है फिर तू क्या करेगी पढ़ लिखकर घर गृहस्ती के काम सीख तू तो बस दादी की बातें सुनकर अंबिका उदास हो जाती है फिर संध्या अपने कानों की बालियां बेचकर उसका एडमिशन स्कूल में करवा देती है और उसके लिए किताबें और वर्दी खरीदती है आज अंबिका के स्कूल का पहला दिन था वह अपने दोनों भाइयों के साथ स्कूल चली जाती है स्कूल जाकर अंबिका बहुत खुश थी उसके अंदर एक अजीब चमक थी जिससे उसने पहले ही दिन स्कूल

में टीचर्स जो भी पढ़ाती उसका जवाब पहले से ही अंबिका को आ जाता अरे वाह अंबिका तुम्हें पहले से सब आता है सचमुच बहुत तेज दिमाग है तुम्हारा धन्यवाद अंबिका का दिमाग इतना तेज था कि वह पांचवीं में पढ़ रहे अपने दोनों भाइयों को भी पढ़ा देती थी सुमित तुझे मैथ का यह वाला सवाल समझ आया था क्या स्कूल में सर ने बताया था लेकिन मुझे फिर भी समझ में नहीं आया नहीं समझ तो मुझे भी नहीं आया भैया यह तो कितना आसान है लाओ मैं समझाती हूं तू रहने दे अंबिका जब हमें समझ में नहीं आ

चुटकियों में सॉल्व कर दिया यह देख उसके भाई और माता-पिता भी हैरान थे अंबिका ना सिर्फ पढ़ाई में अपनी ती बल्कि स्कूल में भी जब उसकी या किसी बड़े क्लास के बच्चे को किसी प्रश्न में प्रॉब्लम होती तो अंबिका चुटकियों में उसे समझा देती और उसके समझाते ही बच्चों को सब बड़े अच्छे से समझ आ जाता पढ़ाई के साथ-साथ अंबिका अपने दोस्तों के साथ बैठकर लंच करती और प्लेग्राउंड में जाकर खूब खेलती ऐसे ही समय बीता फिर एक दिन स्कूल में भाग भागो स्कूल की पहली मंजिल में आग

लग गई है जल्दी करो स्कूल के सभी टीचर और स्टूडेंट्स भागकर प्लेग्राउंड में आ गए स्कूल में लगी आग की खबर मिलते ही मनोज संध्या और जानकी समेत गांव के और लोग भी आ गए अंबिका मेरी बच्ची तू ठीक तो है ना हां मां अमित और सुमित कहां है तभी उनकी क्लास का एक लड़का बोला अमित और सुमित तो बाथरूम गए थे और लगता है वह वहीं आग में फस गए हैं क्या हे माता रानी हे मां दुर्गा मेरे बच्चों की रक्षा कर यह सुनते ही अंबिका भागते हुए आग के लपटों के बीच से होकर स्कूल के अंदर चली गई अंबिका अंबिका मेरी बच्ची अंबिका रुक जा मेरी बेटी कुछ देर बाद अंबिका अमित और

सुमित के साथ आग के लपटों के बीच चली आ रही थी लेकिन सभी यह देखकर हैरान थे कि इतनी आग के अंदर चलने पर भी वह जल नहीं रहे थे और उनके शरीर पर एक खरोश तक नहीं थी बच्चों बच्चों ठीक तो हो ना तुम अंबिका तुझे किसने कहा था आग के अंदर जाने को अगर तुझे कुछ हो जा तो मां आपने ही तो कहा था मुझे उनकी रक्षा करने के लिए यह बात सुनते ही संध्या को अपनी कई बात याद आती है लेकिन मैंने तो मां दुर्गा से इसका मतलब उसके इतना कहते ही अंबिका मुस्कुराती है और मां दुर्गा के अवतार में आ जाती है सभी लोग हाथ जोड़कर उनके सामने खड़े हो जाते हैं जय मां दुर्गा जय मां दुर्गा हां

संध्या मैं ही तुम्हारी बेटी अंबिका हूं और मैं ही तुम्हारी मां दुर्गा भी इसके बा मां दुर्गा ने उन्हें सारी बात बताई कि कैसे उन्होंने शिवजी से धरती लोक पर आने की बात कही और कैसे वह बाल कन्या के रूप में उस पेड़ में आई और फिर उनके घर आपको अपनी बेटी के रूप में पाकर हम तो धन्य हो गए मां हम धन्य हो गए मां आप हमारी आंखों के सामने थी और हम आपको पहचान नहीं पाए हमें क्षमा कर देना मां हमें क्षमा हे दुर्गा मां मुझ ना समझ बुढ़िया को माफ कर देना मां जो मैं तुम्हें पहचान नहीं पाई और ना जाने आपके साथ कितना बुरा व्यवहार किया मनोज तुम्हारे परिवार के साथ बिताए

पल और स्कूल में बिताए दिन मुझे हमेशा याद रहेंगे मैं बहुत ही खूबसूरत यादें संजोकर देवलोक लौटूंगा मनोज संध्या मेरा आशीर्वाद तुम्हारे परिवार पर हमेशा रहेगा जानकी बेटा हो या बेटी शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार सबके लिए बराबर है धरती लोक पर आने का मेरा मकसद अब पूरा हुआ इसलिए अब मुझे यहां से जाना होगा मां तो क्या अंबिका मेरा मतलब है मां दुर्गा यानी हमारी बहन अब हमसे दूर चली जाएंगी नहीं पुत्र केवल मैं जा रही हूं मेरा ही रूप तुम्हारी बहन बनकर और संध्या और मनोज की बेटी बनकर तुम्हारे साथ रहेगी फिर अपने चमत्कार से मां दुर्गा

अंबिका के रूप की एक कन्या प्रकट करती हैं और फिर वहां से अंतरध्यान हो जाती हैं वो लड़की यानी कि अंबिका को संध्या और मनोज गले से लगा लेते हैं वह सब जब घर लौटे तो उनकी झोपड़ी एक बड़े पक्के घर में बदल चुकी थी साथ ही घर के अंदर नोटों से भरी ढेरों गड्डियां रखी हुई थी अब उनकी गरीबी दूर हो गई और वह सब खुशी-खुशी रहने लगे

Hindi Kahani | Bhakti Kahani | Bhakti Stories | Moral Stories | Kahaniya –

Leave a Comment