मां पार्वती और उनके दोनों पुत्र

मां पार्वती और उनके दोनों पुत्र

 

मां पार्वती अपने दोनों पुत्रों को बड़े ही लाड प्यार से भोजन खिला रही थी यह निवाला गणेश का और यह निवाला कार्तिकेय का माता श्री लड्डू तो सचमुच बहुत ही स्वादिष्ट है माता श्री यह गणेश एक बार में कितने लड्डू खा जाता है मेरे तो सिर्फ दो ही खत्म हुए हैं मुझे और लड्डू चाहिए माता श्री पहले मुझे दो पहले मुझे यह मैंने लड्डू उठा लिए अब तू मुझे पकड़ कर दिखा देखा माता श्री गणेश सारे लड्डू उठाकर ले गया मैं अभी इसे पकड़ता हूं कार्तिकेय मैं तो यहां हूं कितने

मां पार्वती और उनके दोनों पुत्र

(08:20) स्वादिष्ट लड्डू हैं तुम दोनों खेलो मैं वहां बैठती हूं रुक गणेश आज मैं तुझे पकड़ कर ही रहूंगा नहीं कार्तिके तुम मुझे नहीं पकड़ पाओगे माता श्री देखो ना गणेश बार-बार अदृश्य हो जाता है मैं उसे पकड़ भी नहीं पाता हूं नारायण नारायण अच्छा तो गणेश और कार्तिकेय देवी पार्वती के समक्ष क्रीड़ा कर रहे हैं प्रणाम देवर्ष नारद कहिए कैसे आना हुआ देवी पार्वती मैं तो आपको यह दिव्य आम देने आया था आम यह आम तो मैं ही खाऊंगा नहीं मैं तुमसे बड़ा हूं इसलिए यह आम मैं खाऊंगा नहीं मैं तुमसे बड़ा हूं इसलिए यह आम मैं ही खाऊंगा अरे अरे तुम दोनों क्यों आपस में लड़ रहे हो

(09:05) मेरे लिए तो मेरे दोनों पुत्र बराबर हैं इसलिए लडू नहीं देवी पार्वती आम तो मैंने आपको दे दिया पर अब इन दोनों में से कौन बड़ा है इस गुत्थी को सुलझाने के लिए तो भगवान भोलेनाथ ही कुछ कर सकते हैं वो देखिए भोलेनाथ आ गए हैं देवर्षि नारद आज कैलाश पर क्या हुआ मेरे दोनों पुत्रों में किस विषय पर बहस हो रही है अच्छा प्रभु आप आ गए इन दोनों को अब आप ही समझाइए मुझे आज्ञा दीजिए प्रभु अब मैं चलता हूं नारायण नारायण पिताश्री मैं गणेश से बड़ा हूं इसलिए यह आम फल मुझे ही मिलना चाहिए पिताश्री आप ही बताइए मैं कार्तिकेय से बड़ा हूं ना इसलिए यह फल मुझे ही मिलना

(09:50) चाहिए देख लिया दोनों ही अपने आप को बड़ा बनाने पर उतारू है मेरे पास एक हल है तुम्हें उसके लिए एक कार्य सिद्ध करना होगा पिता श्री आप आज्ञा दीजिए पल भर में ही मैं वह कार्य पूर्ण कर लूंगा तो कार्य है पृथ्वी की परिक्रमा करने का तुम दोनों में से जो भी सबसे पहले तीन बार पृथ्वी की परिक्रमा करके सबसे पहले कैलाश पर्वत पर लौटेगा उसे ही बड़ा भाई होने का अधिकार प्राप्त होगा वही विजेता भी बनेगा और दौड़ के विजेता को उसके इनाम के रूप में फल मिलेगा फिर तो विजेता मैं ही बनूंगा माता श्री पिता श्री मुझे आशीर्वाद दीजिए कार्तिकेय तुरंत अपने दिव्य वाहन मोर पर

(10:34) सवार हो गए और आकाश में उड़ते हुए चले गए उन्होंने अपने रास्ते में आने वाले हर पवित्र स्थल का दौरा किया और देवताओं से प्रार्थना की भगवान गणेश जानते थे कि वह भारी हैं और उनकी सवारी चूहा कार्तिकेय के मोर जितना तेज नहीं दौड़ सकता अगर वह दुनिया का चक्कर लगाते हैं तो अपने भाई को कभी नहीं हरा पाएंगे उन्होंने अपनी बुद्धि का उपयोग किया और अपने माता-पिता को एक साथ बैठने के लिए कहा माता श्री पिता श्री क्या आप दोनों वहां एक साथ विराजमान हो सकते हैं पुत्र गणेश तुम पृथ्वी की परिक्रमा में नहीं जा रहे हो क्या तुम्हें प्रतियोगिता में भाग नहीं लेना पार्वती

(11:13) हमारे दोनों ही पुत्र बहुत बुद्धिमान और होनहार हैं गणेश इस समय जरूर कुछ और ही विचार मन में सोच रहा है गणेश जी ने अपने हाथ जोड़े और अत्यंत भक्ति के साथ भगवान शिव और देवी पार्वती के समक्ष चक्कर लगाने लगे उन्होंने तीन बार परिक्रमा की और जीत के पुरस्कार की मांग की माता श्री ये प्रतियोगिता तो मैंने जीत ली पर पुत्र तुम तो पृथ्वी के भ्रमण पर गए ही नहीं पिताश्री जन्म धारण करने वाली प्रत्येक संतान के लिए माता-पिता के चरणों में ही पूरा संसार विद्यमान होता है माता-पिता ही अपनी संतान के लिए त्रिलोक समान होते हैं माता श्री के आंचल की छाव और आपके स्नेह

(11:54) की गोद मेरे लिए पूरी पृथ्वी के समान है जहां आप दोनों की सेवा करने से मुझे सर्व सुख प्राप्त होते हैं मेरा लाल मेरा गणेश पार्वती वेद पुराण के हिसाब से गणेश की बात सही है इसलिए गणेश को ही बड़ा भाई माना जाएगा कार्तिकेय जब परिक्रमा करके वापस लौटे तो उन्हें भी सारी बात का पता चला व भी गणेश की बुद्धिमानी से बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने प्रेम से गणेश को गले लगा लिया उसके पश्चात माता पार्वती ने अपने दोनों पुत्रों को व दिव्य आम मिल बांटकर खाने के लिए दिया मैं [संगीत]

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