वैशाख की कहानियाँ (तारा भोजन की कहानी) | Bhakti Kahani | Bhakti Stories

वैशाख की कहानियाँ (तारा भोजन की कहानी)

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एक राजा की लड़की तारा भोजन करती थी। उसने अपने पिताजी से कहा, पिताजी मुझे नौ लाख तारे बनवा दो, मैं, दान करूँगी। राजा ने सुनार को बुलाया और कहा कि मेरी बेटी तारा भोजन करती है तुम नौ लाख तारे बना दो। इतना सुनकर सुनार सूखने लगा।

सुनारी ने पूछा कि उदास क्यों रहते हो। उसने कहा राजा की लड़की ने नौ लाख तारे बनाने के लिए कहा है। मैं कैसे बनाऊँ मुझे तारे बनाने नहीं आते। राजा की बात है, नहीं बने तो कोल्हू में पिलवा देगा।

सुनारी ने कहा, इसमें परेशान होने की क्या बात है। गोल-सा पतरा काट के कलिया काट देना, राजा ले जाएगा।

सुनार ने ऐसा ही किया, राजा ले गया। राजा की लड़की ने नौ लाख तारे और बहुत-सा दान दिया। भगवान का सिंहासन डोलने लगा। भगवान ने कहा देखों मेरे नेम व्रत पर कौन है, तीन कूट देखा तो कोई नहीं था, चौथे कूट देखा कि राजा की लड़की तारा भोजन करा रही है। भगवान ने कहा उसे ले आओ। उसने व्रत किए है। भगवान के दूतों ने कहा चलो तुम्हें भगवान ने बुलाया है। उसने कहा मैं ऐसे नहीं जाऊँगी। मैं तो सारी प्रजा को, उस सुनार को जिसने तेरे तारे बनाए, जिसने कहानी सुनी, सबको लेकर जाऊँगी। दूत उसके लिए बड़ा विमान लाए कि चलो। वह कहने लगी हाँ अब मैं चलूँगी। सब विमान में बैठकर जाने लगे रास्ते में उसे अभिमान हो गया कि मैं तारा भोजन व्रत नहीं करती तो सबको स्वर्ग कैसे मिलता। दूत ने उसे वहीं से नीचे उतार दिया कि तुम्हें अभिमान हो गया है।

दूत भगवान के पास पहुँचे तो भगवान ने कहा, इन सबमें तारा भोजन व्रत करने वाली कौन-सी है। वे बोले उसने अभिमान किया इसलिए हम उसे छोड़ आए। भगवान बोले नहीं-नहीं उसे लेकर आओ, लड़की ने सात बार क्षमा माँग ली है। क्षमा, क्षमा, क्षमा, क्षमा, क्षमा, क्षमा, क्षमा करो भगवान।

जैसे राजा की लड़की को स्वर्ग लोक मिला, वैसे भगवान सबको स्वर्ग लोक देना।

“जय जय श्री हरि”

 

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