शांति और सफलता का रहस्य
आज का अमृत
दोस पराए देखि करि, चला हसन्त हसन्त।
अपने याद न आबई, जिनका आदि न अंत।
अर्थ: यह मनुषायवका स्वभाव है कि जब वह दूसरों के दोष देखकर हंसता है, तब उसे अपने दोष याद नही आते जिनका आदि है न अंत।
शांति और सफलता का रहस्य
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एक बुजुर्ग किसान मनीराम के दो बेटे थे । नाम था संकल्प और विकल्प । जब किसान का अंत समय नजदीक आया तो सोचा संपत्ति का बंटवारा कर जाऊ, वरना बाद में ये दोनों लड़ेंगे । अतः बुजुर्ग किसान ने अपने दोनों बेटों में बराबर संपत्ति का बंटवारा कर दिया । बुजुर्ग किसान जल्द ही मर गया ।
दोनों भाई अलग – अलग गृहस्थी का सञ्चालन करने लगे । बड़ा भाई विकल्प शुरुआत में तो कोई काम धाम नहीं किया, लेकिन रोज – रोज बीवी के ताने सुनकर उसने भी काम धंधा करना शुरू कर दिया ।
लेकिन फिर भी वह दिनों दिन गरीब होता जा रहा था । जबकि उसका छोटा भाई संकल्प बड़ा ही मितव्ययी और मेहनती था । आरम्भ से ही अपना सारा ध्यान काम पर लगाकर मेहनत में जुट गया और पिता की संपत्ति को बढ़ाकर अमीर सेठ हो गया था ।
बड़ा भाई छोटे की संपत्ति से जलने लगा । उसे संदेह होने लगा कि पिताजी ने छोटे को जरुर मुझसे छुपाकर कोई धन दिया है । अतः वह अक्सर गाँव के लोगों के आगे उसकी बुराई करने लगा । दिनों – दिन उसकी स्थिति बिगड़ती गई ।
इसी दौरान संयोग से उस गाँव में एक संत का आगमन हुआ । उन्होंने गाँव के चौपाल पर बैठकर लोगों को अच्छे जीवन के कुछ सूत्र बताये । लोगों ने भी उनका अच्छा आतिथ्य सत्कार किया ।
बड़े भाई की पत्नी बड़ी समझदार थी । उसने अपने पति से आग्रह किया कि “ देखोजी ! मुझे लगता है, ये महात्माजी बड़े विद्वान मालूम होते है । आप तो जानते ही है, हमारी स्थिति दिनों दिन बिगड़ती जा रही है । आप इन महात्माजी के पास जाकर सफलता का कोई सूत्र क्यों नहीं पूछते ?” पहले तो पति परमेश्वर ने मना किया किन्तु पत्नी जब बहुत आग्रह करने लगी तो उसने महात्मा के पास जाने का निश्चय किया ।
विकल्प महात्माजी के पास गया बोला – “ गुरूजी ! मैं जो भी काम शुरू करता हूँ, मुझे असफलता का मुंह देखना पड़ता है, जबकि खूब मेहनत करता हूँ, अतः कृपा करके सफलता का कोई सूत्र बताये ।” अब सफलता के तो कई सूत्र होते है । महात्माजी सोच में पड़ गये कि क्या बताऊ, क्या नहीं !
महात्माजी बोले – “ बेटा ! मैं पास ही के गाँव जा रहा हूँ, जरा मेरे साथ चलो, वही तुम्हें सफलता का सूत्र भी बता दूंगा ।” महात्माजी उसके मन में झांकना चाहते थे और देखना चाहते थे कि आखिर गड़बड़ कहाँ है ? विकल्प भी राजी हो गया ।
शांति और सफलता का रहस्य Shanti Aur Safalta ka Rahasya
अब दोनों पड़ोसी गाँव की ओर चलने लगे । महात्माजी ने पूछना शुरू किया कि गाँव में कब से हो ?, घर में कौन – कौन है ?, कितने भाई हो ? इत्यादि । वह भी महात्माजी के प्रश्न के अनुसार जवाब देने लगा । जब उसके छोटे भाई की बात आई तो उसने अपने पिता और छोटे भाई दोनों को धोखेबाज बताया और उनकी बहुत सी बुराइयाँ की । फिर महात्माजी ने गाँव के सरपंच के बारे में पूछा तो उसने उसकी भी कई बुराइयाँ गिना दी । महात्माजी ने फिर गाँव के चौकीदार के बारे में पूछा तो उसने उसकी भी गिनी चुनी बुराइयाँ सुना दी । इतना सब पूछने के बाद महात्माजी समझ गये कि इसकी समस्या क्या है ?
फिर महात्माजी बोले – “ देख ! अब मैं तुझे सफलता का सूत्र बताता हूँ ।”
तब वह बोला – “ जी महात्माजी ! मैं इसीलिए तो आपके साथ चल रहा हूँ, जल्दी बताइए ?”
महात्माजी बोले – “मैं तुझे ब्रह्माजी वाला सफलता का सूत्र सुना रहा हूँ, इसलिए ध्यान से सुनना । तेरी ही तरह एक बार एक व्यक्ति ने ब्रह्माजी की तपस्या की । तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी प्रकट हुए और वरदान मांगने को बोला । तब वह व्यक्ति बोला कि ‘प्रभु आपके दर्शन पाकर मैं धन्य हो गया । मुझे और कोई वरदान नहीं चाहिए ।’ तब ब्रह्माजी आग्रह करने लगे कि ‘ मैं कुछ दिए बगेर नहीं जा सकता, कुछ तो मांग’ तब उस तपस्वी ने कहा कि ‘ प्रभु सुख शांति का वरदान दे दीजिये ।’ तब ब्रह्माजी ने उपहार स्वरूप उसे दो काले थैले दिए, जिनमें एक बड़ा और एक छोटा था । बड़ा थैला उन्होंने पीठ पर लटका दिया और छोटा थैला सामने सीने पर लटका दिया । उस व्यक्ति ने इन दोनों थैलों का रहस्य और उपयोग पूछा तो ब्रह्माजी बोले”
“ वत्स ! ये दोनों बुराइयों के थैले है । बड़ा थैला संसार की बुराइयों का है और छोटा थैला स्वयं की बुराइयों का है । बड़े थैले में संसार की बुराइयाँ भरी पड़ी है, इसलिए इसे पीछे रखना और इसमें से केवल उन्हीं बुराइयों को देखना जो तू दूर कर सके । बाकि बुराइयों पर ध्यान मत देना वरना अकारण ही क्षोभ होगा और तेरी प्रगति में बाधा उत्पन्न होगी । ये जो छोटा थैला है, यह तेरी स्वयं की बुराइयों का है, इसे हमेशा नज़रों के सामने रखना । इनको बार – बार देखते रहना और सतत दूर करने का प्रयत्न रहना । यदि इन दो थैलों का तूने सतर्कतापूर्वक ध्यान रखा तो तेरे जीवन में शाश्वत सुख शांति और सफलता बनी रहेगी ।” इतना कहकर ब्रह्माजी अंतर्ध्यान गये ।
महात्माजी विकल्प से बोले – “ बेटा ! मेरा भी तुझसे यही आग्रह है कि ब्रह्माजी इस सूत्र का तू अपने जीवन में पालन करेगा तो निश्चय ही शाश्वत सुख – शांति और सफलता का अधिकारी बनेगा ।” विकल्प को महात्माजी की बात समझ आ गई । उसने उसी के अनुसार अपना जीवन शुरू कर दिया । कुछ ही दिनों में उसे अच्छे परिणाम मिले और उसका जीवन सुख – शांति और सफलता से व्यतीत होने लगा ।
कहानी की शिक्षा इतनी ही है कि हमें भी दूसरों के दोषों से ध्यान हटाकर अपने जीवन को सुधारने में लग जाना चाहिए।अपना सुधार संसार की सबसे बड़ी सेवा है।” तो देर किस बात की।हम सुधरेंगे,युग सुधरेगा..!!