गणेश जी और अँधा भिखारी | Ganesh Ji ki Story
Ganesh Ji ki Story : सुखी पुर गॉव में मोहन नाम का एक अंधा अनाथ लड़का रहता था। वह मन्दिर के बाहर बैठ कर भीख मांग कर गुजर बसर करता था। गॉव मंे शंकर चाचा थे जो बचपन से मोहन की देखभाल करते थे मोहन उन्हीं के साथ रहता था और वे उसे सुबह मन्दिर के बाहर छोड़ जाते थे रात के समय उसे अपने घर ले जाते थे। इसी तरह समय बीत रहा था।
एक दिन मोहन ने शंकर चाचा से कहा ‘‘चाचा आप मेरा बोझ कब तक उठाते रहेंगे आप बचपन से मेरी देखभाल कर रहे हैं। मैं आप पर और बोझ नहीं डालना चाहता आप मुझे मेरे हाल पर छोड़ दीजिये’’
शंकर चाचा ने कहा ‘‘मैं तुझे अपना बेटा मानता हूं और तू मुझे छोड़ कर जाने की बात कर रहा है अगर तेरी जगह मेरा सगा बेटा होता तो क्या मुझे छोड़ कर चला जाता।’’
यह सुनकर मोहन रोने लगा तब शंकर चाचा ने उसे समझाते हुए कहा ‘‘तू गणेश जी के मन्दिर के बाहर बरसों से भीख मांग रहा है। समझ ले तू उनकी शरण में है। उनकी पूजा किया कर वे ही तेरी रक्षा करेंगे’’
मोहन ने कहा ‘‘चाचा हम भिखारियों को मन्दिर में जाने की इजाजत नहीं है मैं तो मन ही मन गणपति जी को याद कर लेता हूं।’’
तब शंकर चाचा ने कहा ‘‘बेटा तू चिन्ता मत कर एक दिन सब ठीक हो जायेगा चल अब सो जा रात काफी हो गई है’’
अगले दिन शंकर चाचा मोहन को लेकर गणेश जी के मन्दिर पहुंचे तभी मन्दिर के पुजारी ने उन्हें रोका और कहा ‘‘अरे इस भिखारी को कहां मन्दिर के अन्दर ला रहे हो। यह तो हर दिन मन्दिर के बाहर बैठता है इसे मन्दिर के बाहर ले जाओ’’
शंकर चाचा ने कहा ‘‘क्या भिखारी इंसान नहीं होते उन्हें पूजा पाठ करने का हक नहीं होता तुम कौन होते हो इसे पूजा करने से रोकने वाले’’
इस पर पुजारी बिगड़ गया और उन्हें मन्दिर से बाहर निकाल दिया तब मोहन ने कहा ‘‘चाचा रहने दो मैं यहीं से भगवान की पूजा कर लूंगा आप मुझ अंधे के लिए झगड़ा मत करो कहीं पुजारी को गुस्सा आ गया तो यह मुझे मन्दिर के बाहर भी बैठने नहीं देगा’’
यह कहकर मोहन अपनी पुरानी जगह जाकर बैठ गया। शंकर चाचा वापस अपने घर चले गये।
मोहन बैठ कर भीख मांग रह था तभी उसे किसी के रोने की आवाज सुनाई दी उसे लगा कोई बच्चा रो रहा है। उसने टटोलते हुए पूछा ‘‘तुम कौन हो और क्यों रो रहे हो’’
तब उस बच्चे ने कहा ‘‘मुझे भूख लगी है और मन्दिर के पास की दुकान में बहुत अच्छे लड्डू रखे हैं लेकिन मेरे पास पैसे नहीं हैं’’
मोहन ने कहा ‘‘कोई बात नहीं तुम मेरे पैसे लेकर लड्डू खरीद कर खा लो’’ यह कहकर मोहन ने अपने पैसों में से उसे 5 रुपये दे दिये’’
कुछ देर बाद वह बालक मोहन के पास आया और बोला ‘‘मैं दो लड्डू लाया हूं एक आप खा लो’’
मोहन ने कहा ‘‘नहीं तुम दोंनो लड्डू खा लो तुम्हारा नाम क्या है’’
उस बालक ने कहा ‘‘मेरा नाम गगन है मैं पास ही मेरा घर है मेरे माता पिता सुबह काम पर चले जाते हैं। मैं मन्दिर में खेलने आ जाता हूं’’ यह कहकर वह बालक चला गया।
अगले दिन से हर दिन वह बालक आता मोहन उसे 5 रुपये देता और वह लड्डू खाकर चला जाता था।
एक दिन वह बालक आया तो उसने मोहन से कहा ‘‘तुम रोज मुझे 5 रुपये देते हो कभी मना नहीं करते’’
तब मोहन ने कहा ‘‘गगन मैं गणेश जी को लड्डू का भोग लगाना चाहता हूं लेकिन हम भिखारियों को मन्दिर के अन्दर नहीं जाने देते जब तुम लड्डू खाते हो तो मुझे ऐसा लगता है जैसे गणेश जी खुद भोग लेने मेरे पास आ गये तुम रोज आया करो मैं तुम्हारा इंतजार करूंगा’’
इसी तरह समय बीतता रहा एक दिन गगन ने मोहन से कहा ‘‘मैं अब तुमसे मिलने और लड्डू खाने नही आ सकूंगा मेरे माता पिता दूसरे गॉव जा रहे हैं’’
यह सुनकर मोहन रोने लगा उसने कहा ‘‘मैं तुम्हारे बगैर नहीं रह सकता मैं देख तो नहीं सकता लेकिन जब मैं तुम्हें ५ रुपये देता हूं तो मुझे बालक रूपी गणेश जी लड्डू खाते दिखाई देते हैं तुम मुझे छोड़ कर मत जाना नहीं तो मैं जिंदा नहीं रहूंगा’’
तब गगन ने कहा ‘‘अच्छा ठीक है तुम मेरे साथ मेरे घर चलो मेरे माता पिता से बात कर लेना अगर वे मान गये तो मैं रोज तुम्हारे लड्डू खाने आता रहूंगा।’’
मोहन गगन के साथ चल दिया काफी दूर चलने के बाद उसने पूछा ‘‘गगन लगता है हम बहुत दूर आ गये तुम्हारा घर कहां है।’’
गगन ने कहा ‘‘बस पहुंचने ही वाले हैं।’’
कुछ दूर चलने के बाद मोहन ने फिर पूछा लेकिन कोई उत्तर नहीं मिला। मोहन ने पुकारा ‘‘गगन गगन तुम कहां हो’’ लेकिन कोई जबाब नहीं मिला
मोहन घबरा गया तभी उसका पैर किसी पत्थर से टकराया और वह गिर पड़ा उसके सिर में तेज दर्द हो रहा था। वह उठा और उसने आंख खोल कर देखा तो सामने गणपति जी खड़े थे। मोहन उनके पैरों में गिर गया।
गणेश जी ने उससे कहा ‘‘मोहन तम्हें मन्दिर नहीं आने दिया गया इसलिए मैं अपना भोग लेने हर दिन तुम्हारे आता था। इतने गरीब होते हुए भी तुमने मुझे हर दिन लड्डू का भोग लगाया। आज से तुम गरीब नहीं रहोगे तुम्हारा घर धन धान्य से भरा रहेगा और कोई तुम्हें मेरे दर्शन करने से नहीं रोक सकेगा।’’ यह कहकर भगवान अर्न्तध्यान हो गये।
मोहन की आंखों की रोशनी वापस आ गई थी। वह अपने घर आ गया वहां उसने देखा एक कोने में सोने चांदी रुपये के ढेर लगे हैं।
अगले दिन से मोहन नये कपड़े पहन कर शंकर चाचा को साथ लेकर गणेश जी के मन्दिर जाने लगा। अब उसे किसी ने नहीं रोका भगवान की पूज करने से।
हे विघ्नहर्ता अपने भक्तों पर सदा कृपा बनाये रखना।
Shiv Ji ki Sacchi Kahani | एक बहेलिये की शिव भक्ति
Shiv Ji ki Sacchi Kahani : एक गॉव में हरिया नाम का एक बहेलिया रहता था वह गॉव में जाल बिछा कर चिड़िया, कबूतर, तोता और अन्य पक्षियों को पकड़ता था फिर उन्हें पिंजरे में बंद करके रख लेता और गॉव के बाजार में बेच देता था।
हरिया के घर में उसकी पत्नि शोभा भगवान शिव की भक्त थी वह दिन रात भगवान शिव की पूजा करती थी। शोभा अपने पति के काम से खुश नहीं थी। एक दिन उसने ने हरिया से कहा ‘‘सुनो जी तुम जिन पक्षियों को पकड़ कर बेचते हो इससे उन्हें कितनी तकलीफ होती होगी’’
उसकी बात सुन कर हरिया हसने लगा और उसने कहा ‘‘तुझे कैसे पता इन्हें तकलीफ होती है इन्हें बाजार में बेचने से मुझे अच्छे पैसे मिलते हैं।’’
यह सुनकर शोभा रोने लगी उसने कहा ‘‘आपको शायद यह नहीं पता कि इन भोले बेजुबान पक्षियों की हाय हमें लग रही है इसी कारण हमारे कोई सन्तान नहीं है। मैं दिन रात भगवान शिव की पूजा करती हूं लेकिन फिर भी हम सन्तान के सुख से वंचित हैं।’’
तब हरिया ने कहा ‘‘मैं यह सब नहीं मानता तू भी इस सबके बारे में सोचना छोड़ दे’’ यह कहकर हरिया पक्षी पकड़ने चल देता है।
शाम को हरिया पिंजरे में पक्षीयों को लेकर आता है और झोपड़ी में रख देता है। अगले दिन फिर से हरिया पक्षीयों को पकड़ने चला जाता है।
तभी कोई घर का दरवाजा खटखटाता है। शोभा दरवाजा खोल कर देखती है तो उसके सामने एक ब्राह्मण अपनी पत्नि के साथ खड़े थे। शोभा उनसे कहती है। ‘‘महाराज आप लोग कौंन हैं।’’
तब ब्राह्मण कहता है ‘‘बेटी हम बहुत दूर से कुछ दिन इस गॉव के शिव मन्दिर में अमर कथा वाचने आये हैं। इसलिए घर घर जाकर उसका निमंत्रण दे रहे हैं। तुम भी कल से अपने परिवार के साथ कथा सुनने आना।’’
यह सुनकर शोभा बहुत खुश हुई उसने कहा ‘‘हे ब्राह्मण देवता मेरे तो भाग्य खुल गये ऐसा अवसर तो किस्मत वालों को मिलता है। परन्तु आप दोंनो की रहने की व्यवस्था कहां है।’’
तब ब्राह्मण ने कहा ‘‘बेटी मन्दिर के पंडित जी ने हमारा रहने का इंजताम मन्दिर में ही कर दिया है। और इस गॉव में जो भी हमें सम्मान और प्यार से भोजन करायेगा हम भोजन कर लेगें’’
यह सुनकर शोभा की आंखो से आंसू बहने लगे उसने रोते हुऐ कहा ‘‘महाराज मैं बहुत गरीब हूं लेकिन मेरी इच्छा है कि जब तक आप इस गॉव में रहें आप मेरे घर में भोजन करें परन्तु मेरे घर में रूखा सूखा है जो आपको पसंद नहीं आयेगा’’
यह सुनकर ब्राह्मण की पत्नि बोली ‘‘बेटी तुम चिन्ता मत करो यदि तुम्हारी इच्छा हमें भोजन कराने की है तो हर दिन हम तुम्हारे घर में ही भोजन करेंगे तुम्हारे रूखे सूखे एक निवाले से ही हमारी तृप्ति हो जायेगी’’
यह सुनकर शोभा बहुत खुश हो गई उसने कहा ‘‘मैं आपके लिए भोजन तैयार करती हूं’’
तब ब्राह्मण ने कहा ‘‘माई तुम भोजन तैयार करो हम पूरे गॉव में निमंत्रण देकर तुम्हारे घर आयेंगे।’’
यह कहकर दोंनो चले जाते हैं।
शोभा भोजन तैयार करती है। कुछ समय बीत जाने के बाद दोंनो पति पत्नि शोभा के घर भोजन करने आ जाते हैं। जब वे भोजन करने बैठते हैं। तभी ब्राह्मण की नजर पिंजरे में पक्षियों पर पड़ती है। वे उठ कर खड़े हो जाते हैं। शोभा उनसे पूछती है ‘‘महाराज क्या मेरे से कोई भूल हो गई’’
ब्राह्मण ने श्चोधित होते हुए कहा ‘‘तुमने इन बेजुबान पक्षियों को पिंजरे में कैद कर रखा है। हम तुम्हारे घर भोजन नहीं कर सकते। तुम भगवान शिव की अमर कथा सुनना चाहती हों और उनके प्रिय कबूतरों को तुमने कैद कर रखा है।’’ यह कहकर वे चल देते हैं।
शोभा उनके पैर पकड़ लेती है और कहती है ‘‘हे ब्राह्मण देवता मेरे घर से रुष्ट होकर न जाईये मैं तो वैसे भी संतान सुख से वंचित हूं। अगर आप भी बिना भोजन किये चले गये तो हमारा सर्वनाश निश्चित है। यह पक्षी मेरे पति ने पकड़े हैं। मैं अभी इन्हें आजाद कर देती हू°।’’
यह कहकर वह बाहर जाकर सारे पक्षियों को आजाद कर देती है। यह देख कर ब्राह्मण पत्नि सहित भोजन करते हैं और शोभा को सौभाग्यवती और पुत्रवती होने का आशीर्वाद देकर चले जाते हैं।
शाम को जब हरिया आता है। वह पिंजरा खाली देखकर शोभा से पूछता है। तब शोभा उसे सारी घटना बता देती है। हरिया गुस्से में कहता है ‘‘मैं इतनी मेहनत से पक्षी पकड़ कर लाया था और तूने सब उड़ा दिये आज के बाद किसी को भोजन पर मत बुलाना’’
तब शोभा कहती है ‘‘मैंने तो उन दोंनो को सातो दिन का न्यौता दे दिया है अब मैं पीछे नहीं हट सकती है उन्होंने मुझे सौभाग्वती और पुत्रवती होने का आशीर्वाद दिया है अमरकथा वाचने वाले सच्चे ब्राह्मण का आशीर्वाद कभी बेकार नहीं जाता। अगर उन्हें भोजन नहीं कराया और उन्होंने गुस्से में श्राप दे दिया तो हमारा सर्वनाश हो जायेगा। आप केवल सात दिन तक पक्षियों को मत पकड़ना बाद में जो चाहें करना।’’
हरिया को हार कर उसकी बात माननी पड़ी वह बे मन से सात दिन घर पर ही रहने लगा। हर दिन ब्राह्मण और उनकी पत्नि भोजन करने आते उनके आने से पहले हरिया घर से चला जाता उसे यह सब पसंद नहीं था। शाम के समय शोभा कथा सुनने जाती वह हरिया से भी चलने को कहती लेकिन हरिया मना कर देता था।
इसी तरह 6 दिन बीत गये रात को शोभा ने हरिया से कहा ‘‘आपने मेरे कहने से छह दिन पक्षियों को नहीं पकड़ा बस आप मेरी एक बात और मान लीजिए’’
हरिया ने कहा ‘‘क्या बात है वैसे भी मैं केवल कल ही घर पर रुकूंगा परसों से अपने काम पर जाउंगा’’
तब शोभा ने कहा ‘‘कल अमर कथा समाप्त हो जायेगी मैं चाहती हूं आप कल मेरे साथ मन्दिर में कथा सुनने चलें और वहां से वापास आने के बाद ब्राह्मण और उनकी पत्नि को अंतिम बार भोजन करा कर उनसे आशीर्वाद लें। क्या पता उनके आशीर्वाद से हमें सन्तान का सुख मिल जाये।’’
हरिया उसकी बात सुन कर अगले दिन कथा सुनने चल देता है।
मन्दिर में कथा सुनते सुनते हरिया की आंखों से आंसू बहने लगते हैं। शोभा के पूछने पर वह कहता है ‘‘भगवान शिव ने जिन कबूतरों को अमरता का आशीर्वाद दिया मैंने जीवन भर उन्हें बेच कर अपना जीवन नरक बना लिया।’’ कथा समाप्त होने पर वे दोंनो घर आ गये।
हरिया का मन निर्मल हो गया था उसने शोभा से कहा ‘‘मैं आज से ही यह काम छोड़ दूंगा और मेहनत मजदूरी करूंगा’’
कुछ देर बाद ब्राह्मण और उनकी पत्नि भोजन करने आये। हरिया ने उनका स्वागत किया उन्हें भोजन कराया उसके बाद हरिया ने अपने मन की सारी बात उनके सामने रख दी।
तभी ब्राह्मण और उनकी पत्नि भगवान शिव और मॉं पार्वती के रूप में प्रकट हो जाते हैं। भगवान शिव कहते हैं ‘‘तुम्हारी पत्नि की भक्ति देख कर हम तुम्हें संतान सुख देना चाहते थे किन्तु तुम्हारे पाप के कारण यह संभव नहीं था इसलिए हमें तुम्हारा मन बदलने के लिए भेष बदल कर यहां आना पड़ा’’
यह सुन कर दोंनो पति पत्नि रोने लगते हैं और उनके चरणों गिर जाते हैं। भगवान शिव और मॉं पार्वती उन्हें पुत्रवती होने का आशीर्वाद देकर अर्न्तध्यान हो जाते हैं।
भगवान के आशीर्वाद से उनके घर एक सुन्दर कन्या का जन्म होता है। कन्या के आने के बाद उनके दिन बदल जाते हैं। वे काफी धनवान हो जाते हैं।